विश्वा॑नि देव सवितर्दुरि॒तानि॒ परा॑ सुव। यद्भ॒द्रं तन्न॒ आ सु॑व ॥५॥
viśvāni deva savitar duritāni parā suva | yad bhadraṁ tan na ā suva ||
विश्वा॑नि। दे॒व॒। स॒वि॒तः॒। दुः॒ऽइ॒तानि॑। परा॑। सु॒व॒। यत्। भ॒द्रम्। तत्। नः॒। आ। सु॒व॒ ॥५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्य किसलिये ईश्वर की प्रार्थना करें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यैः किमर्थमीश्वरः प्रार्थनीय इत्याह ॥
हे सवितर्देव जगदीश्वर ! विश्वानि दुरितानि त्वं परा सुव यद्भद्रं तन्न आ सुव ॥५॥